कोस्टाओ - गोल्ड स्मगलर्स, गोवा, और एक साहसी अफसर की कहानी
अगर आप नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के फैन हैं, या फिर सच्ची कहानियों पर आधारित फिल्मों के शौकीन हैं – तो कोस्टाओ आपके लिए है।
निर्देशक - सेजल शाह
कलाकार - नवाजुद्दीन सिद्दीकी, प्रिया बापट, किशोर, हुसैन दलाल, और माहिका शर्मा।
लेखक - भावेश मंडालिया और मेघना श्रीवास्तव
प्लेटफ़ॉर्म - ZEE5
अवधि - 2 घंटे 4 मिनट
अगर कोस्टाओ को एक वाक्य में बयान करना हो, तो ये कहना काफी होगा – "जब ईमानदारी महंगी पड़ती है, तब भी कुछ लोग सस्ता सौदा नहीं करते।" निर्देशक सेजल शाह की यह बायोपिक क्राइम ड्रामा 90 के दशक के गोवा में सेट है और असल ज़िंदगी के कस्टम ऑफिसर कोस्टाओ फर्नांडीस की कहानी पर आधारित है। एक ऐसे अफसर की कहानी, जो न सिर्फ अपने देश के लिए लड़ता है, बल्कि उस सिस्टम से भी टकराता है जिसे बचाने की कसम उसने खाई थी।
फिल्म की जान हैं नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, जिन्होंने कोस्टाओ का किरदार इस अंदाज़ में निभाया है कि वो कहीं से भी ‘एक्टर’ नहीं लगते – वो सच में कोस्टाओ बन जाते हैं। एक ऐसा ऑफिसर जो गलत को सहन नहीं कर सकता, और जब उसे 1500 करोड़ की सोने की तस्करी की जानकारी मिलती है, तो वह अपनी जान की परवाह किए बिना एक पावरफुल पॉलिटिशन डी’मेलो के खिलाफ मोर्चा खोल देता है। इस रास्ते में उसे सिर्फ अपराधियों से नहीं, बल्कि सिस्टम की बेरुखी, पारिवारिक तनाव और अपनों की नाराज़गी से भी जूझना पड़ता है।
फिल्म का दिल है उसका इमोशनल पहलू। कोस्टाओ सिर्फ एक ऑफिसर नहीं, एक पति और पिता भी है। प्रिया बापट ने पत्नी के किरदार में बेहतरीन काम किया है – उनका और नवाज़ का झगड़े वाला सीन इतना रियल लगता है कि जैसे हम किसी पड़ोसी के घर में झांक रहे हों। सबसे खूबसूरत टच है फिल्म का नैरेशन, जो कोस्टाओ की बेटी की आवाज़ में होता है। उसकी मासूमियत और अपने पिता पर विश्वास फिल्म में एक अलग ही गहराई जोड़ते हैं।
कुछ डायलॉग्स सीधे दिल पर लगते हैं, खासकर जब कोस्टाओ कहता है – "हमारे समाज में सबको चाहिए कि ऑफिसर ईमानदार हो, बहादुर हो…लेकिन घर में नहीं।" यही वो लाइन है जो फिल्म के दर्द और सच्चाई को समेट देती है।
हालांकि फिल्म की गति बीच में थोड़ी धीमी पड़ती है, और खलनायक डी’मेलो का किरदार थोड़ा एक-आयामी लगता है – उसके पास डराने के लिए सिर्फ पावर है, पर्सनैलिटी नहीं। लेकिन फिल्म की जान नवाज़ हैं, और उनकी परफॉर्मेंस इतनी सधी हुई है कि आप इन कमियों को नजरअंदाज कर सकते हैं।
कोस्टाओ कोई मसाला एंटरटेनर नहीं है, ये एक सधी हुई, गंभीर कहानी है उस ईमानदारी की जो आज के समय में कम मिलती है। ये फिल्म बताती है कि सच्चाई का रास्ता कितना मुश्किल होता है, और कैसे एक इंसान सब कुछ खोकर भी अपना सिर ऊंचा रख सकता है।
अगर आप नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के फैन हैं, या फिर सच्ची कहानियों पर आधारित फिल्मों के शौकीन हैं – तो कोस्टाओ आपके लिए है। इसे देखना एक सफर है – गोवा की गलियों से होते हुए सिस्टम के साए तक, जहां इंसानियत और इमानदारी की असली कीमत नजर आती है।